“एग्जिट पोल्स”
अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग
श्रीगोपाल गुप्ता
एक समय था जब पूरी दुनिया में भारत की मीडिया के सच का डंका पुजता था। मगर ये सब बीते समय की बात हो चली है, अब भारतीय मीडिया रसातल की और अग्रसर है।आहिस्ता-आहिस्ता देश और विदेश के लोग भारतीय मीडिया की करतूतों और उसके पक्षपातपूर्ण रवैये से वाफिक होते जा रहे हैं और यही कारण है कि लोग अब मीडिया विशेषकर इलैक्ट्रॉनिक्स मीडिया द्वारा दिखाई जा रही सामग्री पर ध्यान नहीं देते। कारण है कि जो खबरें हैं जिनसे प्रत्येक भारतीय नागरिकों वाफिक होना चाहिए टीवी चैनल उन्हें नहीं दिखाते और जो नहीं दिखानी चाहिए वो दिखाते हैं। जिससे लगता है कि टीवी चैनलों का अपनी टीपीआर बढ़ाना और सनसनी फैलाना ही मात्र उद्देश्य रह गया हो!ऐसी बेतूकी खबरें हैं जिन्हें दिखाने का कोई औचित्य नहीं हैं क्योंकि बे खबरें हैं ही नहीं मगर फिर परोसी जा रही हैं, इनमें से एक है चुनाव बाद तत्काल “एक्जिट पोल्स”का प्रसारण। जो वैज्ञानिक और हकीकत से परे है और धार्मिक भविष्यवाणी के करीब-करीब है। यह मात्र कपोल गाथा है जिसे दिखाकर टीवी चैनल सुर्खियां बटोरते और अपने-अपने चैनलों की टीपीआर बढ़ाने का सफल प्रयास करते हैं। मगर सन् 2014 के बाद मगर केन्द्र के आम चुनाव सहित आठ राज्यों में हुये विधानसभा चुनावों के परिणामों के विपरीत ये एक्जिट पोल कहीं-कहीं धूल चाटते नजर आये तो कहीं-कहीं घिसी-पिटी भविष्यवाणी दिखीं। क्योकि वास्तविक परिणामों के सामने ये अनुमान किसी काम के नहीं रह गये।फिर चाहें ये 2015 में संपन्न हुये दिल्ली, बिहार या फिर 2016 में उत्तर प्रदेश, तमिलनाडू विधानसभा के चुनाव परिणाम हों। लगभग सभी जगह एक्जिट पोल औंधे मूंह गिरे पाये गये। सबसे बुरी गति तो दिल्ली प्रदेश की विधानसभा का भविष्य गढ़ने वाले सभी सर्वे करने वाले चैनलों की हुई। कोई भी चैनल वर्तमान में सत्तारूढ़ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को 70 सदस्यों वाली विधानसभा में 40-42 से ज्यादा सीट देने के मूंढ़ में नहीं थे मगर जैसे ही ईवीएमों ने मत उगलने शुरु किये तो आम आदमी पार्टी का यह आंकड़ा 70 में से 67 के जादूई आंकड़े पर रुका तो यही एक्जिट पोल का दावा करने वालों को सांप सूंघ गया।
ताजा सन्दर्भ गत 20 नवंबर को छत्तिसगढ़ विधानसभा, 28 नवंबर को मध्यप्रदेश व मिजोरम राज्य और गत 7 दिसंबर को सपन्न राजस्थान व तेलेंगना पांच राज्य विधानसभा चुनाव को लेकर है। जिसकी मतगढ़ना अगामी 11 दिसंबर को एक साथ होगी।मगर गत 20 दिसंबर से भारी मन इक्कठे कर रखे बोगस एक्जिट पोल को दिखाने के लिए बैचेन टीवी चैनलों ने अंतिम राज्यों राजस्थान और तेलेगंना के चुनाव गत 7 दिसंबर को पांच बजे सपन्न होते ही दिखाना शुरु कर दिया है। सर्वे करने वाली आठ एजेंसियों में से पांच ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के आसार प्रगट किये हैं जबकि तीन एजेंसियों ने भाजपा के पुनः पदस्थ होने के संकेत दिए हैं। सबसे मजेदार बात यह है कि जहां एबीपी न्यूज अपने तर्कों और अनुमानित मत प्रतिशत के आधार पर कुल 230 सीटों में से कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत 126 सीटें देने की बात कर रही हैं तो वहीं टाइम्स नाऊ और सीएनएक्स भाजपा को 126 सीट देकर पुनः चौथी मर्तबा सरकार बनाने का दावा कर रहा है। वहीं एबीपी न्यूज छत्तिसगढ़ में 90 में से भाजपा को 56-57 सीट देकर पुनः चौथी मर्तबा सरकार बनाने का दावा करती नजर आ रही है तो ‘इंडिया टूडे’ आजतक कांग्रेस को 56-57 सीट देने का दावा कर रहा है। ध्यान देने की बात यह है कि दोनों ही चैनल अपने-अपने एक्जिट पोल्स को वैज्ञानिक और आधूनिक पद्धति से जोड़कर दावा कर रहे हैं जबकि भारत देश में ये माण्यता सन् 1951-52 के प्रथम चुनाव के साथ ही प्रचलित है कि पहले ‘वोट पेट का और पेटी का’ और अब ‘वोट पेट का और ईवीएम एम का’ ऐसे में इनका एग्जिट पोल्स करने का वैज्ञानिक तरीका है? समझ के परे है,क्योंकि मतदान केन्द्रों के बाहर और भीतर तो हम भी पत्रकार होने के कारण मौजुद रहते हैं, हमें तो कोई मतदाता वोट की बात किसे दिया है नहीं बताता। फिर इन्हें बताने का वो विशेष कारण क्या है? सबसे ज्यादा फजीहत तो उन भाजपा के नेताजी की हुई जो एक चैनल पर छत्तीसगढ़ में 57 सीट मिलने की सही वजह अपनी सरकार के द्वारा कराये गये विकास कार्यों को बताया तो वही नेताजी एक दूसरे चैनल पर छत्तीसगढ़ में 57सीटें कांग्रेस को मिलने पर चुप नजर आये जबकि एंकर जोर-जोर से उनको पूछता और कचोटता रहा कि आखिर जनता ने आपकों नकार दिया। इसलिये स्पष्ट है कि इन एक्जिट पोल्स में कोई दम नहीं और यह अपनी टीपीआर और सनसनी फैलाने की मात्र कवायद भर है और अपनी-अपनी ढफली और अपना-अपना राग मात्र है।